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भटकती आत्मा भाग - 18

भटकती आत्मा (भाग - 18) 

          
मनकू माझी दिन-रात दूसरे के परामर्श पर काम करता था। वह भेड़ भी चराता था। पहाड़ी क्षेत्र के कृषि सींच के लिए वर्षा पर ही प्रतिबंध है। समय पर पानी नहीं बार,खेत की खेती बनी। त्राहि-त्राहि मच गया, अक्ल पड़ गई, लोग दाने-दाने के लिए तरसने लगे।
   गांव के ज्यादातर लोग बाहर काम की तलाश में लगे। जानकी भी बाहर जाना चाहती थी,परन्तु मनकू वसी ने उसे स्नेह से समझाया -
   "तुम्हारे भाई के साथ तुम बाहर काम करोगी, यह नहीं हो सकता बहन। तुम घर संभालो, काम मैं कर लूंगी। पहाड़ी क्षेत्र में सड़क निर्माण हो रहा है, वहां पुरुषों के लिए कोई खतरा नहीं है। लेकिन सहायक के लिए काम करना ठीक नहीं है, क्योंकि यह ब्रिटेन और चीन की युवतियों की पसंद नहीं है। मुझे यह पसंद नहीं आएगा कि कोई मेरी बहन की ओर से देखे और देखें।''
  जानकी को मनकू के सामने हथियार डाल दिया गया। गाँव के अन्य स्त्री-पुरुष दैनिक विवाह करने लगे थे। आए दिन गांव की युवतियों के साथ कोई ना कोई अशोभनीय बात हो ही गई थी। मनकू माझी का मन इससे पहले था। लेकिन वह तो पुरुष है डटकर का मुकाबला करना होगा। उन्होंने सड़क निर्माण में मजदूर बनने की सोची। मैगनोलिया ने जब यह सुना तब उसने नौकरी छोड़ दी। उनका विचार था कि मनकू अपने बंगले पर ही रहें जहां एक नौकर की नौकरी से काम करें। लेकिन मनकू माझी यह नहीं चाहता था, इसलिए वह अपनी स्थिति पर स्थिर है।
   गाँव से पहाड़ी दूर क्षेत्र में पक्की सड़क बन रही थी, मनकू भी उसी में मजदूर बन गया। कुछ दिन तो ठीक-ठाक चला, लेकिन एक दिन सारी किताबों के साथ वह भी अद्भुत रह गई जब उसी गांव की एक लड़की के मृत देह अनाचार की कहानी एक के पास सामने आई। मूर्ति में बैचलर बनाया गया। जब वहां मौजूद सभी लोगों ने आसपास के क्षेत्र में काम किया तो सभी लोगों ने वहां से यात्रा शुरू कर दी। अस्सिटेंट के होने से और मामले को पुलिस में भर्ती करने से लेकर श्रमिक को शांत किया गया, और फिर से कार्य किया गया। परंतु यह क्या ! आए दिन किसी न किसी श्रमिक की पारिश्रमिक कम कर दी जाती है, किसी-किसी श्रमिक को बिना किसी बात के पीट दिया जाता है | मनकू को यह सब बुरा लगता है।
  एक दिन शाम के समय सभी शैतानों ने काम खत्म करके मनकू माझी को जा घेरा। उनका साथ-साथ सभी लोग रनिया गांव की और चल पड़े। बाइबिल में मनकू माझी सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी थी।
गांव में एक जगह पर सभी श्रमिक इकट्ठे हुए और अन्याय से लड़ने के लिए विचार-विमर्श किया गया। संप्रदाय से मनकू को श्रमिक वर्ग का नेता घोषित कर दिया गया। वह तो यह उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहता था, लेकिन सभी लोगों के सामने उसके पास हथियार ही थे |
    एक दिन की बात है, एक सुंदर सी नवयौवना श्रमिक वर्ग को पारिश्रमिक के कम रु. मिले। इसका कारण यह था कि उसने ठीक से काम नहीं किया था, लेकिन मूल बात यह थी कि वह अपने साथ समय बिताने के लिए गाड़ी से कहीं जाना चाहती थी, लेकिन वह नहीं गई। हकीकत जानने वाला मनकू का खून खोल उठा। 
   उन्होंने सारी पुजारियों को एकजुट किया और काम नहीं करने की धमकी दे दी। इस पर मनकू को एक ओर ले जाया गया और उसे अपने पक्ष में मिलाना चाहा,परन्तु उसने नहीं माना | फिर तो सिद्धांत की नौबत आ गई | मजदूर वर्ग और भी बाउखला उठान पर इंग्लैण्ड के उपकरणों का आगमन, क्योंकि उन्होंने अपनी बंदूक का प्लास्टिक उपयोग की खतरनाक दी थी। फिर मौत के भय से सब लोग उठ खड़े हुए और काम करने पर सहमत हो गए।
मनकू माझी ने इसे अपना अपमान समझा लेकिन मौत के मुंह में धूल झोंकने का साहस भी दिखाया तो वह नहीं कर सका। कुछ दिन और भी खिसक गए। मजदूर पूर्ववत कार्य करते रहे। उन में शांति और खुशहाली छाई थी, परंतु उनकी शांति अधिक दिनों तक नहीं रही |
   अनोखी घटना के चार दिन बाद की बात है। सभी श्रमिक कार्य समाप्त कर अपना-अपना पारिश्रमिक प्राप्त कर घर चले गए। मनकू माझी भी गांव में चला गया था। देशी शराब की दो बोतलें उसके सामने थीं और थकान के लिए उसका उपयोग वह करना चाहता था,उसी समय पास के गाँव के कुछ मजदूर आये। उन्होंने बताया कि रतिया अभी तक अपने घर में नहीं डूबी है, रास्ते में भी उन्होंने साथ में नहीं देखा था | केवल एक दिन के समय काम करते समय ही उनके दर्शन हुए | एक दो बार का जूता और उसकी विशाल हंसी भी पढ़ी गई थी, परंतु इसे साधारण बात समझ कर किसी ने ध्यान नहीं दिया था | लेकिन अब आधी रात तक जब वह नहीं गया, तब संदेह सिर उठा रहा है।
   मनकू ने कहा - "इस समय हम लोग खोजते फिर रहेंगे, सवेरे ही ठीक रहेंगे"|
एक ने कहा - "नहीं मनकू हमें अभी वास्तु चाहिए, ऐसा ना हो कि देर हो जाए पर कुछ हादसा घट जाए"|
सभी लोगों की यह राय बनी कि रात में ही हरकत में आना ठीक होगा लेकिन ढूंढेंगे कहां? कोई भी छोटा बच्चा तो रास्ता नहीं भटकता। हो सकता है मूल उद्देश्य से इस पर रोक लगाई जा सके। लेकिन वह कहां रहता है यह भी कोई नहीं जानता। फिर यूं ही भटकने से क्या फायदा, क्यों न साहब के निवास पर कुछ अप्रत्याशित हो सकता है। पादरी साहब के इलाके के नजदीक ही तो उनका बंगला है। सभी लोगों ने एक जगह जाने का फैसला किया।
   जब वह लोग बंगले के निकट गये तो लोग आश्चर्यचकित हो गये, क्योंकि इतनी रात को वह बंगले में भी गये थे। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात थी शादी की उपस्थिति | एक रोशनदान से मनकू ने हुंकार कर देखा कि कमरे में रखी कुर्सी पर रखी टेबल की तरफ झुक गया है। टेबल पर शराब की कुछ बोतलें हैं, शीशे में वह शराब उँडेल रही है। एक बंद कमरे से घुटी-घुटी सी नारी कंठ की आवाज सुनी गई। कुछ देर बाद रोने की मंद आवाज भी वतन में तैरती सी महसूस हुई। मनकू वस्तु स्थिति को समझ गया। वह रोशनदान से जंपकर के पास आया और फुसफुसाकर सारी बात बताई।
  यह उनका अनुमान था, लेकिन सच्चाई यह थी या नहीं तो अंदर जाने पर ही पता चल सका | गेट पर लॉक फ़ेड हुआ था, बैथमैन ने स्टॉक की आवाज़ दी | कई नारा रात के शांत वातावरण में गूंजने लगे।
   अंदर अंतिम संस्कार किया हुआ रह गया। उन्होंने साहब के नौकरों से कुछ कहा। एक नौकर दौड़ा चला आया, वह उन लोगों से इतनी रात में आने का कारण पूछा। लेकिन उत्तर मिलने के बदले में कई लोगों ने कहा कि नागालैंड और गेट साइंटिस्ट के बीच मुलाकात हो रही है। परंतु बटलर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अब सारे के सारे मजदूर चारदीवारी लांघने लगे। मनकू माझी दनादनता हुआ, कंधे के नीचे जा खड़ा हुआ। इस स्थापत्य घटना से औद्योगिक कर्मचारी हो गए, फिर भी सीना तान कर बोला -
   "तुम लोग बिना अकेले अंदर क्यों आ गए"?
   मनकू बोल उसकी गर्दन को दोनों हाथों से पकड़ते हुए बोला - "रतिया कहाँ है"?
   "रतिया, कौन रतिया? मैं किसी रतिया को नहीं जानता। तुम लोग नहक परेशान कर रहे हो। अगर वह खो गया है तो उसे बस्ती में तलाश करो। बंगले में कितना अच्छा हो सकता है"|
    "यह ऐसे नहीं मानेगा" - कहा हुआ मनकू माझी उस पर लात और घोंसों के प्रहार करने लगा। कुछ युवा व्लादिका रॉकेट्स पर इलेक्ट्रानिक्स शॉट लगे। आख़िर में एक दरवाज़ा खुला और साहब की कड़कती की आवाज़ सुनाई दी -
    "तुम लोग काहे को यहाँ आये | तुम लोग ऐसे नहीं मानेगा जब तक एक-दो को ऊपर भगवान तक नहीं पहुंचा दूँ"|
   कुछ ग्रामीण साहब की अनदेखी करते हुए बंद कमरे में जगह मिल गई। उन्होंने रतिया को नग्न और बेहोशी की हालत में एक आंख पर पड़े देखा और लोगों के गुस्से की सीमा को पार कर दिया। 
मस्जिद से लिया लाभ सामान साहब ने अलमारी से बंदूक उठाया। उसकी दृष्टि मरीज़ पर पड़ी थी, इसलिए गुस्सा और भी बढ़ गया | हाथ की उंगलियां ट्रिगर पर चलाई गईं और गोल बंदूक से छूटने की जगह। कुछ मजदूर चलते हुए जमीन पर उतरे लगे। 
मनकू का ध्यान उस ओर गया और लपक कर साहब के हाथ से बंदूक छीन ली गई। उनके प्रमाणित लोगों ने साहब को ही पीटना शुरू कर दिया। कुछ युवाओं ने रतिया के असाध्य शरीर को चक्र में लपेटा और बंगले से बाहर निकल गए।
कुछ ने होटल में आग लगा दी। अब सब लोग बाहर आ जाओ। उनके दो दोस्त मारे गए। सभी लोगों के मन से दु:ख और मित्र अभी तक समाप्त नहीं हुए थे, बल्कि और बढ़ गए थे। वर्तमान समय में मनाकू की ओर से अखंड चौधरी साहब के निवास की ओर प्रस्थान किया गया। लेकिन गेट बंद था और पूरा बंगला अंधकार में डूब गया था। आश्चर्य हो रहा था कि सभी लोग कहाँ चले गये।

   क्रमशः
  निर्मला कर्ण 

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